“वन्दे मातरम्” के 150 वर्ष — एकता और राष्ट्रीय गर्व का उत्सव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा — “वन्दे मातरम् 140 करोड़ भारतीयों को जोड़ने वाला मंत्र”
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
“वन्दे मातरम्” की रचना बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 1875 में की थी, जो बाद में उनके प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ में प्रकाशित हुई। यह गीत भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देशभक्ति का प्रतीक बन गया था।24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने इसे राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया। आज यह गीत केवल इतिहास नहीं, बल्कि भारतीय अस्मिता का जीवंत प्रतीक है।
प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा — “वन्दे मातरम् केवल एक गीत नहीं, यह 140 करोड़ भारतीयों की भावना और पहचान है। यह भारत के विविध स्वरूप को एक सूत्र में पिरोने वाला मंत्र है।”
उन्होंने नागरिकों से अपील की कि इस अवसर को “ऐतिहासिक और जनभागीदारी वाला उत्सव” बनाया जाए, ताकि नई पीढ़ी को देश के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी प्रेरणाएँ समझाई जा सकें।
प्रमुख कार्यक्रम
1. दिल्ली: लालकिला और इंडिया गेट परिसर में विशेष “वन्दे मातरम्” संगीतमय प्रस्तुति और राष्ट्रीय परेड।
2. कोलकाता: बंकिमचंद्र की जन्मस्थली पर भव्य सांस्कृतिक उत्सव, “आनंदमठ” नाट्य प्रस्तुति।
3. वाराणसी: गंगा घाटों पर 150 दीपों से “वन्दे मातरम् आरती” का आयोजन।
4. भोपाल: राष्ट्रीय संगीत अकादमी द्वारा “भारत माता संगीत संध्या” कार्यक्रम।
5. छत्तीसगढ़ (रायपुर): “एकता यात्रा” और विद्यालयों में देशभक्ति गीत प्रतियोगिता।
6. मुंबई: फिल्म और टीवी कलाकारों द्वारा “वन्दे मातरम् लाइव कॉन्सर्ट”
7. असम और मणिपुर: स्थानीय भाषाओं में “वन्दे मातरम्” के अनुवाद प्रस्तुत कर एकता का संदेश।
सांस्कृतिक और शैक्षणिक गतिविधियाँ
स्कूलों में “वन्दे मातरम् क्विज़ प्रतियोगिता” और भाषण प्रतियोगिता आयोजित होगी।विश्वविद्यालयों में “भारत की एकता” थीम पर संगोष्ठियाँ और सेमिनार होंगे।संस्कृति मंत्रालय द्वारा “150 Years of Vande Mataram” शीर्षक से एक डॉक्युमेंट्री फिल्म जारी की जाएगी।दूरदर्शन और आकाशवाणी पूरे वर्ष विशेष प्रसारण करेंगे।


संदेश और महत्व
यह उत्सव केवल एक स्मरण नहीं, बल्कि आत्मचिंतन का अवसर है —क्या हम आज भी उस “माँ-भूमि” के प्रति वही समर्पण रखते हैं, जिसका आह्वान इस गीत में है?“वन्दे मातरम्” की पंक्तियाँ — “सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्” — केवल काव्य नहीं, बल्कि भारत की पर्यावरणीय, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक हैं।
“वन्दे मातरम्” के 150 वर्ष केवल एक ऐतिहासिक पड़ाव नहीं, बल्कि भारतीय पहचान और एकता के पुनर्पुष्टि का अवसर हैं।प्रधानमंत्री का यह संदेश स्पष्ट है — “यह उत्सव हर भारतीय के हृदय में देशभक्ति की लौ को फिर से प्रज्ज्वलित करने का समय है।”