चांपा नगरपालिका में शराबखोरी का अड्डा! — खाली शीशियां और सिगरेट पैकेट दे रहे हैं गवाही, जिम्मेदारों पर उठे सवाल

जांजगीर-चांपा
नगरपालिका चांपा एक बार फिर चर्चा में है — और इस बार वजह साफ-सुथरे शहर की नहीं, बल्कि नगरपालिका परिसर में फैली शराबखोरी और लापरवाही की गंध है।
नगरपालिका परिसर के भीतर मालवाहक वाहन खड़े होने वाले स्थान पर शराब की खाली बोतलें, सिगरेट के पैकेट और चखना के रेपर खुलेआम बिखरे हुए मिले हैं।
यह दृश्य अपने आप में इस बात की गवाही दे रहा है कि नगरपालिका में कार्य समय या बाद के घंटों में नशेबाजी हो रही है।

कचरे में छिपा सच — कैमरे में कैद हुई शर्मनाक तस्वीर
स्थानीय लोगों द्वारा खींची गई तस्वीरों में साफ दिखाई दे रहा है कि परिसर के भीतर कई खाली शराब की बोतलें, बीयर कैन, सिगरेट के पैकेट और स्नैक्स के खाली रेपर इधर-उधर फेंके पड़े हैं।
इससे यह सवाल उठता है कि आखिर नगरपालिका जैसे सरकारी दफ्तर में शराबखोरी करने वालों को संरक्षण कौन दे रहा है?
क्या यह सब जिम्मेदार अधिकारियों की आंखों के सामने हो रहा है, या फिर उनकी मिलीभगत से?
बुनियादी सुविधाओं पर संकट, लेकिन शराबखोरी बेखटके
एक ओर चांपा नगरपालिका क्षेत्र में सफाई, पेयजल और बिजली आपूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाएं चरमराई हुई हैं, वहीं दूसरी ओर नगरपालिका के भीतर मदिरापान और मौज-मस्ती का माहौल देखने को मिल रहा है।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि —
“जब जिम्मेदारी के केंद्र में ही गैर-जिम्मेदारी का माहौल होगा, तो शहर की व्यवस्था कैसे सुधरेगी?”

शराब की खाली बोतलें बन गईं सबूत
हालांकि प्रशासनिक स्तर पर अब तक किसी भी अधिकारी ने इस घटना को लेकर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है,
लेकिन मौके पर मौजूद खाली शराब की शीशियां और सिगरेट पैकेट अपनी कहानी खुद बयां कर रहे हैं।
भले ही जिम्मेदार इस खबर को “गलत” या “भ्रामक” बताने की कोशिश करें, परंतु कैमरे में कैद साक्ष्य खुद बोल रहे हैं।
अब निगाहें कार्रवाई पर
अब देखना यह होगा कि नगरपालिका के जिम्मेदार अधिकारी इस मामले पर क्या कदम उठाते हैं
क्या वे शराबखोरी की प्रवृत्ति पर सख्त अंकुश लगाकर जवाबदेही तय करेंगे,
या फिर यह मामला भी नगरपालिका के अन्य विवादों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा।
स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि इस पूरे मामले की जांच कर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में सरकारी परिसरों की गरिमा बनी रहे।
जहां एक ओर सरकार “नशामुक्त समाज” की दिशा में अभियान चला रही है, वहीं दूसरी ओर चांपा नगरपालिका जैसे संस्थानों के भीतर ऐसी घटनाएं होना चिंता का विषय है।
अगर प्रशासनिक दफ्तर ही अनुशासन तोड़ने लगें, तो आम जनता से अनुशासन की अपेक्षा कैसे की जा सकती है?



