छठ पूजा पर भाजपा की जनसक्रियता और कांग्रेस की दूरी — बिहार चुनाव से पहले जनभावना का इम्तिहान

छठ पूजा अब केवल बिहार या पूर्वांचल का पर्व नहीं, बल्कि पूरे देश में लोक-आस्था और जनसंस्कृति का प्रतीक बन चुकी है। इस आस्था से राजनीति भी अछूती नहीं रही।
भाजपा की रणनीति
भाजपा ने छठ को “आस्था से संवाद” का माध्यम बनाया। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर स्थानीय नेताओं तक सभी ने घाटों पर पहुंचकर लोगों से संपर्क किया, आयोजन समितियों से मिले और सोशल मीडिया पर शुभकामनाएं दीं। भाजपा इसे धर्म और राष्ट्रवाद के साथ जोड़कर जनसंवाद की रणनीति के रूप में देख रही है।
कांग्रेस की स्थिति
कांग्रेस का नेतृत्व छठ पर्व पर लगभग मौन रहा। न कोई प्रमुख नेता घाट पर दिखाई दिया, न सोशल मीडिया पर सक्रियता दिखी। अपनी तथाकथित सेक्युलर छवि बनाए रखने की नीति के कारण कांग्रेस आस्था और जनता दोनों से दूर होती दिखी।
राजनीतिक महत्व
बिहार चुनाव की पृष्ठभूमि में छठ अब सांस्कृतिक पहचान और जनभावना का प्रतीक बन चुका है। भाजपा ने इस भावनात्मक जुड़ाव को अपनी ताकत बनाया, जबकि कांग्रेस का मौन उसके जनसंपर्क की कमजोरी को उजागर करता है।
नतीजतन, भाजपा ने छठ पर्व के जरिए जनविश्वास और सांस्कृतिक पूंजी दोनों पर बढ़त हासिल की, जबकि कांग्रेस एक बार फिर जनता की भावनाओं से दूर होती नजर आई।




