छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने गायों की मौत पर सरकार को फटकारा — ताज़ा हलफनामा माँगा

रायपुर/बिलासपुर
28 अक्टूबर 2025 — छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने बिलासपुर जिले के बेलतारा व सुकुलकरी गाँवों में भूख और प्यास से मरी गायों के मामलों पर राज्य सरकार की रिपोर्ट को असंतोषजनक बताते हुए कड़ी फटकार लगाई और राज्य से ताज़ा (विस्तृत) हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने इस मामले को सुवो मोटु (suo motu) आधार पर उठाया था, यानी मीडिया रिपोर्ट के बाद स्वयं संज्ञान लिया गया।
क्या हुआ ?
स्थानीय रिपोर्टों और याचिका में कहा गया है कि बेलतारा व सुकुलकरी के अस्थायी गोशालाओं/शेल्टर में कई पशु (गायें) भूख और प्यास के कारण मरीं। ग्रामीणों का आरोप है कि जिम्मेदार विभागों ने उचित खान-पान, पानी और चिकित्सकीय सुविधा न देकर लापरवाही दिखाई, कुछ carcasses (सड़ कर हुए शव) भी कई स्थानों पर पाए गए। प्रारंभिक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ये घटनाएँ 15 अक्टूबर के आसपास हुईं और मामला मीडिया में ऊभरा तो उसके बाद प्रशासनिक कार्रवाई शुरू हुई।
न्यायालय की नाराजगी — क्यों फटकारा गया?
हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की पहली दलील और दाखिल हलफनामे को “पर्फ़ंक्टरी/शिथिल” (perfunctory) बताया। अदालत ने कहा कि पशुओं की ऐसी मरम्मतहीन और उपेक्षित दशा केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि मानवीय और सामाजिक संवेदनाओं पर गंभीर चोट है — हर मृत प्राणी को गरिमा मिलनी चाहिए और जिम्मेदार विभागों की सक्रियता अपेक्षित थी। इसी कारण न्यायालय ने राज्य से व्यापक और व्यक्तिगत (personal) हलफनामा माँगा जिसमें घटनाक्रम, जांच रिपोर्ट, जिम्मेदारों पर हुई कार्रवाई और भविष्य में उठाये जाने वाले ठोस कदमों का ब्यौरा हो। अदालत ने हलफनामा दाखिल करने की समय-सीमा भी निर्धारित की है।
प्रशासन ने क्या कहा / क्या दाखिल किया गया
सरकार की ओर से पशुपालन/वेटरिनरी विभाग के उच्च अधिकारियों ने प्रारम्भिक हलफनामा दाखिल किया — जिसमें कुछ घटनाओं की तिथियों का उल्लेख और आंशिक जांच ब्योरे दिए गए। हालाँकि अदालत ने इसे अपर्याप्त माना क्योंकि हलफनामे में देरी, carcass-disposal की बात और स्थानीय निरीक्षण/रिपोर्टिंग में मिली असंगतियों का जिक्र था। इसलिए कोर्ट ने और विस्तार से — विशेषकर विभागीय जवाबदेही, जांच के निष्कर्ष और दोषियों के खिलाफ उठाए गए अनुशासनात्मक/विपरीत कदमों का स्पष्ट ब्यौरा — माँगा है।
किस क्लेम/सबूत पर अदालत ने ध्यान दिया
स्थानीयों की शिकायतें कि गोशाला/शेल्टर में पानी और चारे की व्यवस्था न के बराबर थी; पशु झुग्गी/दलदल जैसे अस्वच्छ स्थानों में रखे गए थे।
कुछ स्थानों पर सड़ चुके शव मिलने का दावा, जिससे यह संकेत मिलता है कि मृत पशुओं के निस्तारण और सूचना पर प्रशासनिक ढिलाई हुई।
प्रारम्भिक हलफनामे में स्वीकार किया गया कि कई मृत्युएँ 15 अक्टूबर को हुईं पर मीडिया रिपोर्ट के सामने आने के बाद ही विस्तृत जांच शुरू हुई — इस देरी को कोर्ट ने गंभीरता से लिया।
संभावित निहितार्थ और आगे की कार्रवाई
उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य को 15 दिनों (या कोर्ट द्वारा जो समय दिया गया) के भीतर विस्तृत हलफनामा दाखिल करना होगा — जिसमें पशु मृत्यु के कारण, जिम्मेदार अधिकारियों/कर्मचारियों पर हुई कार्रवाई (यदि कोई हुई है), गोशाला प्रबंधन का रिकॉर्ड, भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए उठाये जाने वाले ठोस कदम शामिल हों।
विभागीय स्तर पर जांच तेज़ करने, गोशालाओं का ऑडिट, संबंधित कर्मचारियों/अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही या सस्पेंशन व प्रशासनिक सुधार के निर्देश सम्भव हैं। कुछ स्थानीय रिपोर्टों के आधार पर विभागीय अधिकारियों के विरुद्ध निलंबन/श disciplinari कदमों की भी खबरें आ रही हैं जिन्हें कोर्ट में स्पष्ट किया जाना है।
स्थानीय प्रतिक्रिया
गाँववासी और पशु-हितैषी संगठन न्यायालय के कदम को स्वागत योग्य बता रहे हैं। वे चाहते हैं कि जांच में पारदर्शिता हो और दोषियों के खिलाफ कठोर कदम उठाये जाएँ ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों। राजनीतिक दल भी इस पर सवाल उठा सकते हैं और प्रशासन से जवाब मांग रहे हैं।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने इस मामले में स्पष्ट संदेश दिया है — पशु कल्याण और उसके संचालन में उपेक्षा प्रशासनिक अनदेखी नहीं माफ की जाएगी। सरकार से माँगा गया विस्तृत हलफनामा और आगामी सुनवाई इस मामले की दिशा तय करेगी। जैसे ही आधिकारिक हलफनामा और कोर्ट के आगे के निर्देश सार्वजनिक होंगे, उस जानकारी के साथ रिपोर्ट अपडेट कर दी जायेगी।

