सरगुजा

रोजगार गया, शराब बची — गंगापूर में शासन की ‘संवेदनशील’ नीति पर सवाल

अंबिकापुर

शहर के गंगापूर मोहल्ले में शासन की दो नीतियाँ आमने-सामने खड़ी हैं — एक तरफ रोजगार देने की बात, दूसरी तरफ शराब से राजस्व कमाने की जिद। अंबिकापुर बस स्टैंड के पास स्थित गंगापूर मोहल्ले में लंबे समय से संचालित देशी शराब दुकान अब सरकार की प्राथमिकताओं पर बड़ा सवाल खड़ा कर रही है।

दरअसल, शराब दुकान के बगल में शासन द्वारा “जिला रोजगार एवं स्वरोजगार मार्गदर्शन केंद्र” का भवन बनाया गया था। उद्देश्य साफ था — युवाओं को रोजगार, प्रशिक्षण और आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रेरित करना। लेकिन विडंबना देखिए, जहां एक ओर बेरोजगारों को रोजगार का मार्ग दिखाने की तैयारी थी, वहीं बगल में शराब की बोतलों से नशे का रास्ता खुला हुआ था।

विवादों का अड्डा बन गई थी जगह

स्थानीय निवासियों के अनुसार, शराब दुकान के कारण यहां अक्सर विवाद, झगड़े और तमाशे की स्थिति बनी रहती थी। कई बार लोग नशे की हालत में रोजगार केंद्र तक पहुंच जाते थे, जिससे वहां कामकाज बाधित होता था। महिलाओं और युवतियों के लिए भी यह इलाका असुरक्षित महसूस होने लगा था।

अंततः प्रशासन ने समाधान निकाला — गलत दिशा में

विवाद बढ़े तो शासन ने एक ‘आसान’ रास्ता चुना — रोजगार मार्गदर्शन केंद्र को ही दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया। यानी, जिसने गड़बड़ी की, वह वहीं रहा; और जिसने समाज सुधार का काम करना था, उसे हटना पड़ा।अब शराब दुकान पहले की तरह शान से खड़ी है, मानो शासन ने उसे विशेष सुरक्षा प्रदान कर रखी हो।

नगरवासी बोले — “सरकार को राजस्व प्यारा, जनता की परेशानी नहीं”स्थानीय नागरिकों का कहना है कि शराब दुकान को हटाने की मांग कई बार की गई, लेकिन हर बार कागजों में ही कार्रवाई रह गई।गंगापूर निवासी राजेश सिंह का कहना है, “रोजगार केंद्र को हटाकर सरकार ने साफ कर दिया कि उसे लोगों की प्रगति से ज्यादा परवाह शराब की बिक्री की है। राजस्व के लिए जनता की सुविधा और सुरक्षा को ताक पर रख दिया गया है।”

रोजगार से हटकर राजस्व पर ध्यान एक अन्य नागरिक ने तंज कसते हुए कहा, “सरकार कहती है युवाओं को आत्मनिर्भर बनाओ, पर इधर नशे में धकेलने वाली दुकानें बढ़ाई जा रही हैं। शायद यही नया ‘रोजगार मॉडल’ है — दुकान चलाओ, पियो और शासन को टैक्स दो।”

प्रशासन मौन, सवाल कायमनगरवासियों का कहना है कि रोजगार केंद्र की इमारत अब सूनी पड़ी है, जबकि उसके बगल में शराब दुकान पर रोज भीड़ लगती है। प्रशासन की चुप्पी और शराब ठेके की मजबूती ने यह संदेश दे दिया है कि शासन की संवेदनशीलता राजस्व के आगे बेबस है।गंगापूर का यह दृश्य एक प्रतीक है — जहां रोजगार की जगह शराब ले रही है, और शासन विकास की जगह वसूली के रास्ते पर चल पड़ा है। सवाल अब भी वही है — “क्या जनता का हित राजस्व की बोतल में दब चुका है?”

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