जांजगीर-चांपा

छठ पर्व की आस्था से सराबोर जांजगीर — हसदेव तट पर भक्ति और उल्लास का संगम

जांजगीर-चांपा

जांजगीर से इस वक्त एक अनुपम दृश्य सामने आया है — जहाँ हसदेव नदी का तट आज आस्था, भक्ति और संस्कृति के रंगों से नहाया हुआ दिखाई दिया। छठ महापर्व के पावन अवसर पर हजारों श्रद्धालु महिलाएँ और परिवारजन घाट पर उमड़ पड़े। हर ओर “छठी मइया” के जयकारों और लोकगीतों की गूंज से वातावरण भक्तिमय हो उठा।

सुबह से ही हसदेव घाट पर पारंपरिक छठ गीतों की मधुर स्वर लहरियाँ गूँज उठीं

“केरवा जे फरेला घेघवा के नीचे…”

इन गीतों ने पूरे माहौल को भक्ति, प्रेम और लोक संस्कृति की मिठास से भर दिया।

सिर पर पूजा की टोकरी, पारंपरिक वेशभूषा में सजी महिलाएँ जब हसदेव नदी में उतरकर उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर रही थीं, तो दृश्य मन मोह लेने वाला था। हर श्रद्धालु के चेहरे पर श्रद्धा, संतोष और आशा की झलक साफ दिखाई दे रही थी।

दीपों की झिलमिल रोशनी, फूलों की महक और जल में प्रतिबिंबित उगते सूर्य की किरणों ने पूरे घाट को आध्यात्मिक आभा से भर दिया। बच्चे, युवा और बुजुर्ग — सभी इस पर्व में समान भाव से शामिल हुए, मानो पूरा समाज एक सूत्र में बंध गया हो।

प्रशासन और नगर पालिका की ओर से सुरक्षा और स्वच्छता के सख्त इंतज़ाम किए गए। घाटों की सफ़ाई, रोशनी और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए टीम लगातार मुस्तैद रही।

छठ महापर्व सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह परिवार, समाज और प्रकृति के प्रति आभार का उत्सव है। यह पर्व हमें सूर्य देव की जीवनदायिनी शक्ति के प्रति कृतज्ञता जताने और पर्यावरण से संतुलन साधने की प्रेरणा देता है।

आज हसदेव नदी तट ने एक बार फिर साबित किया कि जांजगीर की धरती पर आस्था की जड़ें कितनी गहरी हैं — जहाँ हर आरती, हर दीपक और हर गीत में भक्ति, एकता और भारतीय संस्कृति की आत्मा बसती है।

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