छत्तीसगढ़जांजगीर-चांपा

नीति अब आंदोलन में बदली

फाइलें अब भी मौन हैं, पर समितियों में नाराज़गी मुखर — 3 नवंबर से अनिश्चितकालीन आंदोलन का ऐलान

रायपुर / जांजगीर

“धान खरीदी नीति” पर शासन की चुप्पी अब कर्मचारियों के धैर्य की सीमा लांघ चुकी है।जहाँ पिछले माह तक किसान नीति की प्रतीक्षा कर रहे थे,अब वही प्रतीक्षा आंदोलन की तैयारी में बदल चुकी है।राज्य की सहकारी समितियों के कर्मचारी और समर्थन मूल्य धान खरीदी कम्प्यूटर ऑपरेटर संघने 3 नवंबर से अनिश्चितकालीन आंदोलन की घोषणा कर दी है।24 अक्टूबर को जिला स्तरीय ज्ञापन रैली और 28 अक्टूबर को एकदिवसीय महा-आंदोलन के साथयह विरोध प्रदेश-भर में फैलने वाला है।

जमीनी स्तर पर प्रभाव : जांजगीर-चांपा में रैली का ऐलान

प्रदेश-स्तर पर घोषित आंदोलन को अब जिलों से भी समर्थन मिलने लगा है।छत्तीसगढ़ सहकारी समिति कर्मचारी संघ (पंजीयन क्रमांक 6685)तथा समर्थन मूल्य धान खरीदी ऑपरेटर संघ (पंजीयन क्रमांक 122202149760)के संयुक्त आह्वान पर जिला जांजगीर-चांपा सहकारी समिति कर्मचारी संघने आंदोलन को पूर्ण समर्थन देने की घोषणा की है।

संघ की ओर से जारी सूचना के अनुसार,लंबित चार सूत्रीय मांगों को लेकर24 अक्टूबर 2025, दिन शुक्रवार, सुबह 11 बजेजिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित बिलासपुर के जांजगीर जिला कार्यालय (पूर्व नोडल ऑफिस)से कलेक्टर कार्यालय तक विशाल रैली निकाली जाएगी।इस रैली में जिले की सभी समितियों —संस्था प्रबंधक, कंप्यूटर ऑपरेटर, विक्रेता, भृत्य, चौकीदार और अन्य कर्मचारी —की उपस्थिति अत्यंत अनिवार्य बताई गई है।संघ ने कहा है कि इस दिन सभी समितियाँ बंद रहेंगी,और कर्मचारी अपने शाखा प्रबंधक, पर्यवेक्षक एवं प्राधिकृत अधिकारियों कोलिखित सूचना देंगे।आह्वान पत्र के अंत में कहा गया है “कर्मचारी एकता ज़िंदाबाद।”“धान खरीदी का धुंधलका” शीर्षक वाले पूर्व लेख मेंजहाँ यह सवाल उठाया गया था कि “नीति कहाँ है, आदेश कौन देगा, खरीदी कौन करेगा”,वहीं आशंका अब धान खरीदी करने वाले पूर्व कर्मचारी भी उठा रहे है, परन्तु नीति अभी भी फाइलों में है,पर ज़मीनी तैयारी—फड़ की सफाई, बिजली कनेक्शन, सुतली की खरीद, हमालों की नियुक्ति—सब ठहराव की स्थिति में हैं।इस बीच, कर्मचारियों को मौखिक रूप से बताया जा रहा है किइस बार खरीदी “कलेक्टर के अधीनस्थ कर्मचारियों” द्वारा कराई जाएगी,जिसका कोई लिखित आधार अब तक सार्वजनिक नहीं है। समितियों में तनावसहकारी समितियों में इस समय सबसे अधिक चिंता रोज़गार सुरक्षा को लेकर है।वर्षों से धान खरीदी की रीढ़ रहे समिति कर्मचारी अब असमंजस में हैं।कई समितियों ने साफ कहा है कि “हम पहले ही खरीदी से एक माह पूर्व से तैयारी शुरू करते हैं,और 15 जनवरी तक लगातार ड्यूटी पर रहते हैं।यदि हमारी जगह बिना अनुभव वाले कर्मचारी लगाए जाएंगे,तो व्यवस्था का ढांचा ढह जाएगा।”प्रदेश के लगभग 15 हजार कर्मचारियों ने एक स्वर मेंनीति-निर्धारण, मानदेय-नियम और सेवा-सुरक्षा की माँग उठाई है।

आंदोलन की पृष्ठभूमि

संघ के पदाधिकारियों के अनुसार,पिछले वर्ष भी 12 दिवसीय आंदोलन के बादमुख्यमंत्री स्तर पर वार्ता हुई थी और लिखित आश्वासन दिया गया थाकि नीति तैयार की जाएगी और कर्मचारियों की माँगों पर निर्णय होगा।परंतु इस वर्ष स्थिति वैसी ही बनी हुई है —आश्वासन जारी है, पर आदेश अनुपस्थित।संघ ने इस बार चेतावनी दी है कियदि 2 नवंबर तक ठोस निर्णय नहीं हुआ,तो खरीदी-प्रक्रिया की तैयारियाँ प्रभावित होंगीऔर 15 नवंबर से प्रस्तावित खरीदी आरंभ होने में कठिनाई आ सकती है।

प्रशासनिक अस्पष्टता

“कलेक्टर के कर्मचारी” से अभिप्राय आज भी स्पष्ट नहीं है।क्या यह राजस्व विभाग के कर्मचारी होंगे,या कलेक्टरेट के लिपिक व स्टाफ?या फिर कोई अस्थायी अनुबंधित टीम तैयार की जा रही है?इन सवालों के जवाब किसी भी विभाग के पास नहीं हैं।खाद्य विभाग की वेबसाइट पर 2023-24 की नीति अंतिम उपलब्ध दस्तावेज़ है,और सहकारिता विभाग की नवीनतम अधिसूचना 2024-25 की मिलिंग नीति तक सीमित है।इस प्रशासनिक अस्पष्टता ने अफवाहों को नीति-स्थानापन्न बना दिया है।

राजनीतिक संकेत और अटकलें

चूँकि सहकारी समितियों के चुनाव अब तक नहीं हुए हैं,कई स्थानों पर अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त हैं।ग्राम-स्तर पर चर्चा है कियदि खरीदी का संचालन समितियों से हटाकर “जिला प्रशासन” को दिया गया,तो इसका राजनीतिक लाभ कुछ विशेष समूहों तक सीमित रह सकता है।शासन की ओर से इस विषय में अभी कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है,पर अस्पष्टता का माहौल ही अब वास्तविकता बन चुका है। किसानों की स्थितिकिसान इस पूरे विवाद के बीच नीति-विहीन प्रतीक्षा में हैं।उनके लिए प्रश्न केवल इतना है —“कब, कहाँ और किसके माध्यम से हमारा धान तौला जाएगा?”पिछले वर्ष की देर से खरीदी का अनुभवअभी भी ग्रामीणों के मन में ताज़ा है,और इस बार नीति के अभाव में वही हालात दोहराए जाने की आशंका है।“धान खरीदी का धुंधलका” अब केवल एक प्रशासनिक विषय नहीं रहा —यह शासन की नीति-प्रक्रिया और जवाबदेही की परीक्षा बन गया है।जहाँ एक ओर अधिकारी “आदेश की प्रतीक्षा” में हैं,वहीं कर्मचारी “आंदोलन की तैयारी” में।और इस बीच, किसान अपने भरे-पूरे खलिहान को देखते हुए सोच रहा है|

धान पक चुका है, पर नीति अब भी कच्ची है

यदि शासन ने अगले दस दिनों में स्थिति स्पष्ट नहीं की,तो इस बार धान खरीदी की शुरुआत खेतों से नहीं,बल्कि धरनों से होगी।

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