छठ महापर्व का दूसरा दिन आज — खरना पूजा के साथ शुरू हुई असली तपस्या, व्रतियों ने किया सूर्य देव का आह्वान

अंबिकापुर के श्रीराम घाट छठ पूजा सेवा समिति के तत्वाधान में हो रहा है
चार दिनों तक चलने वाले लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा का आज दूसरा दिन है, जिसे ‘खरना’ या ‘लोहंडा’ के नाम से जाना जाता है। यह दिन व्रतियों के लिए सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी से असली तपस्या और संयम की शुरुआत होती है।
नहाय-खाय के अगले दिन मनाया जाने वाला खरना व्रत आत्मसंयम, शुद्धता और भक्ति का प्रतीक है। आज के दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं — यानी न जल ग्रहण करते हैं, न अन्न। सूर्यास्त के बाद स्नान-पूजन कर सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है, और उसके पश्चात गुड़ की रसिया खीर व सोहारी का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, ‘खरना’ का अर्थ होता है — पापों का क्षय और आत्मा की शुद्धि। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से खरना व्रत करता है, उसके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
खरना के प्रसाद में सादगी और पवित्रता का संदेश निहित है — दूध, चावल और गुड़ से बनी रसिया खीर मिठास और संतोष का प्रतीक मानी जाती है, वहीं देसी घी में सेंकी गई सोहारी श्रद्धा और श्रम का प्रतीक है। विशेष बात यह है कि यह प्रसाद मिट्टी, पीतल या कांसे के बर्तनों में ही तैयार किया जाता है ताकि उसकी पवित्रता बनी रहे।
गांवों से लेकर शहरों तक आज हर घर में छठ का माहौल है — महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में पूजा की तैयारियों में जुटी हैं और घरों में गुड़ की खीर की मधुर सुगंध फैल रही है। शाम होते ही व्रती सूर्यास्त के समय पूजा-अर्चना कर प्रसाद ग्रहण करेंगे और इसके साथ ही शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला व्रत — छठ की सबसे कठिन साधना।
छठ महापर्व का यह दूसरा दिन आस्था, संयम और सूर्योपासना का प्रतीक है, जो लोक परंपरा और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।


