छोटे वाहनों पर सख्ती, बड़े पर नरमी — ओवरलोडिंग पर खामोश पुलिस,क्या हजारों बचाने की छुट की कीमत पर करोडो दाव पर ?

जांजगीर-चांपा
ज़िले की सड़कों पर ट्रैफिक नियमों की पालना में बड़ा असंतुलन देखने को मिल रहा है। पुलिस जहाँ दोपहिया चालकों पर सख़्ती दिखा रही है, वहीं भारी वाहनों — खासकर हाईवा और ट्रकों — पर कार्रवाई के मामले में हैरान करने वाली नरमी बरत रही है। नतीजा यह है कि सड़कों पर ओवरलोड वाहन धड़ल्ले से दौड़ रहे हैं और आम लोग पूछ रहे हैं — क्या कानून सिर्फ आम जनता के लिए है?
छोटे वाहन आसान निशाना
शहर और मुख्य मार्गों पर पुलिस रोजाना बड़ी संख्या में मोटरसाइकिल चालकों के चालान काट रही है।कभी हेलमेट नहीं पहनने, तो कभी अधूरे कागजात के नाम पर कार्रवाई होती है।स्थानीय लोगों का कहना है कि आम नागरिक पुलिस के लिए “आसान लक्ष्य” बन चुके हैं — जिन्हें तुरंत रोका जा सकता है और चालान बना दिया जाता है।
ओवरलोड ट्रक और हाईवा बेलगाम
इसके विपरीत, उन्हीं सड़कों पर चलने वाले भारी वाहन खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।जानकारों का कहना है कि हर 10 में से करीब 6 हाईवा निर्धारित सीमा से अधिक भार लेकर चलते हैं।कई वाहनों में आगे के टायर उठाकर चलना आम बात हो गई है, जिससे सड़कों पर गड्ढे बन रहे हैं और हादसों का खतरा बढ़ रहा है।स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिसकर्मी मामूली रकम लेकर इन वाहनों को जाने देते हैं।ऐसे में ट्रांसपोर्टरों को तो हजारों रुपये का फायदा हो जाता है, लेकिन सड़कों की मरम्मत पर सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये खर्च होते हैं।
सवालों के घेरे में ट्रैफिक व्यवस्था
मोटर व्हीकल एक्ट के तहत ओवरलोडिंग पर भारी जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन पुलिस रिकॉर्ड में ऐसे मामलों की संख्या बेहद कम है।यह दर्शाता है कि कार्रवाई “चयनित” तरीके से की जा रही है।ओवरलोड वाहनों के चलते न सिर्फ सड़कें टूट रही हैं, बल्कि ट्रैफिक का संतुलन भी बिगड़ रहा है।
विशेषज्ञों की चेतावनी
सड़क विशेषज्ञों का कहना है कि ओवरलोडिंग सड़क की आयु को आधा कर देती है और मरम्मत लागत को कई गुना बढ़ा देती है।ग्रामीण इलाकों में यह समस्या और गंभीर है, जहां कमजोर सड़कों पर रोजाना भारी वाहन गुजरते हैं।जरूरत सख़्ती की, समानता की ट्रैफिक अनुशासन तभी कायम होगा जब कार्रवाई समान रूप से हो — चाहे वह मोटरसाइकिल सवार हो या करोड़ों का ट्रांसपोर्टर।
कानून तभी सार्थक है जब सब पर एक समान लागू हो।जनता पूछ रही है — क्या पुलिस सिर्फ कमजोरों पर ही सख़्त है?




