जांजगीर-चांपा

किस बोझ में दब गई सच्चाई ?— दीपावली के पहले से ही जल रहे थे पटाखे, पर कानून की लौ बुझी रही

जांजगीर-चांपा

कहा जाता है — “पुलिस का मुखबिर तंत्र कभी नहीं सोता।”हर गली-मोहल्ले, हर गोदाम, हर हिलती ट्रॉली तक उसकी खबर पहुँचती है।पर इस बार दीपावली की चमक में न जाने ऐसा क्या हुआ कि संपूर्ण जिले में हजारों क्विंटल पटाखे पहुँच गए,और किसी को भनक तक नहीं लगी!क्या वाकई मुखबिर तंत्र सो गया,या फिर “किसी मिठाई के बोझ ने सुरागों की दिशा बदल दी”? हर साल छापे, इस बार सन्नाटाहर वर्ष दीपावली से पूर्व पुलिस और राजस्व अमला “अवैध भंडारण” पर कार्यवाही करता था।कहीं गोदामों से विस्फोटक जब्त होते, तो कहीं दुकानों पर जांच के नाम पर सख्ती दिखती।पर इस साल जांजगीर-चांपा जिले में सन्नाटा रहा —कुल 600 अस्थायी लाइसेंस जारी किए गए,हर दुकान को औसतन 500 किलो पटाखे की अनुमति मिली,यानि लगभग 3 लाख किलो (300 टन) विस्फोटक सामग्री का कारोबार —पर ना कोई बड़ी जब्ती, ना कोई निरीक्षण, ना कोई रिपोर्ट। अब सवाल — इतना पटाखा एक साथ आया कहां से?

जानकारों की मानें तो अधिकांश व्यापारी गणेश उत्सव या नवरात्र के दौरान हीपटाखों का स्टॉक गोदामों में रख लेते हैं।दीपावली के समय अस्थायी लाइसेंस लेकर वही पुराना माल वैध बना दिया जाता है।अगर यह सच है, तो यह सीधे तौर पर एक्सपलोसिव्स रूल्स, 2008 के Rule 87–92 का उल्लंघन है “बिना वैध लाइसेंस कोई भी व्यक्ति फायरवर्क का भंडारण नहीं करेगा।”और यदि यह सच नहीं, तो सवाल और गहरा हो जाता है —क्या प्रशासन ने यह मान लिया कि 300 टन फटाके एक ही दिन में जिले में उतर आए?बिना ट्रांसपोर्ट पास (रूल 114–117), बिना फायर NOC, बिना स्रोत विवरण के? कानूनी स्थिति साफ़ है, पर प्रशासन धुंध मेंनियम / अधिनियम उल्लंघन की प्रकृति दंडएक्सपलोसिव्स रूल्स, 2008 रूल 87–92 – पूर्व भंडारण एक्सपलोसिव्स एक्ट, 1884 धारा 9B(1)(a) – 3 वर्ष तक की सज़ाएक्सपलोसिव्स रूल 114–117 – बिना परिवहन पास धारा 9B(1)(b) – जुर्माना व सज़ाछत्तीसगढ़ फायर सेफ्टी एक्ट, 2018 फायर NOC के बिना भंडारण धारा 10 – लाइसेंस निरस्तीकरण सवाल सिर्फ पटाखों का नहीं, सिस्टम का हैजिले में 600 स्टाल लगे, हर दुकान में फायर नियम ताक पर रखकर फटाके रखे गए,मगर किसी थाना प्रभारी, फायर ऑफिसर या एसडीएम को कुछ दिखा ही नहीं!क्या यह महज़ लापरवाही थी,या फिर वही पुरानी बीमारी — “देखो, पर देखो नहीं”?अगर हर साल मुखबिरों को भंडारण की खबर मिलती थी,तो इस बार किसने उन्हें “चुप” कराया?क्या सचमुच जानकारी नहीं थी,या फिर “खबर दबाने की भी कीमत तय हो चुकी थी”? प्रशासनिक चुप्पी की कीमतफायरवर्क्स का अवैध भंडारण केवल “लाइसेंस उल्लंघन” नहीं है,यह जनसुरक्षा का मुद्दा है।500 किलो विस्फोटक सामग्री के विस्फोट से 100 मीटर दायरे में जानमाल का भारी नुकसान हो सकता है।अब सोचिए —जब 600 दुकानों में यह मात्रा रखी गई,तो जिले ने अपने नागरिकों को किस आग के घेरे में झोंक दिया? जनता पूछ रही है — जिम्मेदार कौन?क्या जिला विस्फोटक अधिकारी ने ट्रांसपोर्ट पास की पुष्टि की?क्या पुलिस का इंटेलिजेंस नेटवर्क पूरी तरह निष्क्रिय रहा?और क्या कलेक्टर कार्यालय ने इस “लाइसेंस-उद्योग” की कोई जांच की? जनता की जुबान में सवाल “अगर हर साल अवैध भंडारण पर केस बनते थे,तो इस बार हर व्यापारी ‘साफ-सुथरा’ कैसे हो गया?”“क्या इस बार कानून को दीपावली बोनस के रूप में छुट्टी दे दी गई?” दीपावली की चमक में कानून की लौ मंद पड़ गईइस पूरे प्रकरण का सार यही है कि या तो 300 टन पटाखे एक ही दिन में जिले में उतर आए — जो असंभव है,या फिर महीनों से अवैध भंडारण चल रहा था — जो गैरकानूनी है।दोनों ही परिस्थितियाँ एक्सपलोसिव्स एक्ट और फायर सेफ्टी एक्ट का उल्लंघन हैं।अब सवाल यह नहीं कि पटाखे कहाँ से आए —बल्कि यह है कि “प्रशासन ने उन्हें आते हुए क्यों नहीं देखा?”दीपावली रोशनी का त्योहार है, पर इस साल जांजगीर-चांपा मेंरोशनी की नहीं, सन्नाटे की चमक ज़्यादा दिखाई दी।मुखबिर तंत्र मौन, निरीक्षण तंत्र निष्क्रिय,और कानून, शायद किसी बोझ में दब गया।कानून की वह लौ जो हर दीपावली पहले से अधिक जलनी चाहिए थी इस बार बुझी हुई दिखी।

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