जवाबों से क्यों डर रहा आबकारी विभाग? — सूचना का अधिकार बना सवालों का जाल

क्यों डरता है आबकारी विभाग? — सूचना का अधिकार लेने से पीछे क्यों हट रहे अधिकारीसरकारी विभागों की पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है सूचना का अधिकार — आरटीआई एक्ट।लेकिन जब कोई विभाग इस अधिकार से ही डरने लगे, तो सवाल उठना लाजमी है।हम बात कर रहे हैं आबकारी विभाग की, जो न सिर्फ सूचना देने से बच रहा है बल्कि आवक-जावक लेटर तक लेने से इंकार कर रहा है!क्या आबकारी विभाग में कुछ ऐसा है, जो छिपाया जा रहा है?
आबकारी विभाग के दफ्तर का बाहर का दृश्य “जांजगीर-चांपा का आबकारी विभाग — जहां पारदर्शिता की जगह ‘छिपाव’ का खेल चल रहा है।सूचना का अधिकार कानून साफ कहता है कि कोई भी नागरिक विभाग से जानकारी मांग सकता है।
लेकिन यहां हालात उल्टे हैं —आरटीआई आवेदन लेने में अधिकारी खुद पीछे हट रहे हैं।”


“जब हमने आवक-जावक रजिस्टर के लिए आवेदन दिया — तो जवाब मिला…‘पहले अधिकारी से बात करिए, फिर लेंगे आवेदन… बाद में देंगे पावती!’अब सवाल यह है —आवक-जावक पत्र लेने से पहले अधिकारी से ‘बात’ करने की जरूरत क्यों?”
“क्या आबकारी विभाग के पास छिपाने को कुछ है?क्यों विभाग को ‘पावती’ देने से डर लगता है?अगर सब कुछ नियमों के अनुसार है,तो आरटीआई आवेदन लेने में हिचक क्यों?”
“आरटीआई देने वाले नागरिक को जवाब देने से पहले अगर विभाग ‘सोचने’ लगे,तो समझ लीजिए — कहीं न कहीं गड़बड़ी जरूर है।आबकारी विभाग का यह रवैया न सिर्फ पारदर्शिता के खिलाफ है,बल्कि सीधे-सीधे सूचना के अधिकार कानून का उल्लंघन है।”
“ अब सवाल साफ है — क्या आबकारी विभाग में कुछ ऐसा है, जिसे जनता से छिपाया जा रहा है?क्यों सूचना का अधिकार देने से डर रहा है एक सरकारी विभाग?और सबसे बड़ा सवाल — क्या प्रशासन इस ‘डर’ पर अब कार्रवाई करेगा?“वहीं जब आवक-जावक के अधिकारी ने अपने उच्च अधिकारी से बात की,तब जाकर आवेदन लिया गया और पावती दी गई।
अब बड़ा सवाल यह है
क्या इस आवेदन में पूछे गए सवालों के जवाब जनता तक पहुँच पाएंगे?या फिर जवाबों की ‘कॉपी’ भी फाइलों में दबा दी जाएगी?”





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